क्या हैं अघोर तंत्र aghor tantra और कैसे होते हैं अघोरी यही इसका विषय है और आज आपको इसी से रूबरू करवाता हूँ , अघोर पंथ एक् समुदाय हैं जिसमे अघोरी आते हैं ये लोग शिव को पूजते हैं जैसे लोग विष्णु को पूजते हैं, अघोर का मतलब होता है मलिन और गंदा यानि ये लोग इस तरह से रहते है की पहली नजर में आप इन्हे पसंद नहीं करोगे , अघोरी का मतलब है जो शांत हो, घोर यानि डरावना नहीं हो, निर्मल हो और भेदभाव न करें , ये अघोरी हैं इनके लिए कोई भी चीज अपवित्र नहीं हैं ये इंसान का माँस तक खा जाते हैं, लाश से संभोग करते हैं,

इनके जगह पे जब आप जाओगे तो डर ही जाओगे क्युकी चारों तरफ जलती चिताये , आग की लपटे , उठते धुवा से जलती आंखे और अपने शरीर पे राख मलते हुए , खोपड़ी से तंत्र क्रिया करते हुए। ये लोग महाकाल के ओघड़ रूप की पूजा करते हैं। महाकाल को दही से नहलाते हैं फल मिठायी का भोग लगाते है और शराब और माँस का भोग भी देते हैं। अघोरी लोग नंगे होकर साधना करते हैं इससे तंत्र में सिद्धि जल्दी मिलती हैं, ये लोग अपने साथ कंकाल खोपड़ी रखते हैं और इनका मानना है की ये सत्य की प्रतीक होती हैं और ये खोपड़ी उस इंसान की होती है जिसकी आत्मा भटक रही होती हैं उसी से ये साधकर अपना काम करवाते हैं, ये लोग इस शक्ति को मदिरा और माँस का सेवन भी करवाते हैं,

ये लोग अपनी क्रिया रात में ही करते हैं रात को 11 बजे से लेकर 3 बजे तक , पूरी रात साधना करते हैं, इस दौरान इनके शरीर पे एक् भी कपड़ा नहीं होता हैं, अघोरी लोग बहाए या जलाए हुए शवों से खोपड़ी लेते हैं और ये लोग सारी क्रियाए जानते और करते हैं, वशीकरण से लेकर जादू टोना, खोया पाया, धन, कोर्ट केस , मंत्र तंत्र सब कुछ , ये लोग ऐसे मार्ग पे जलते हैं जो कठिन हो परंतु उसके लिए ये किसी भी गंदगी को अपना सकते हैं इनके लिए कुछ भी गंदा मलिन नहीं होता, अघोर की साधना 5 क्रिया पे होती हैं, माँस, मछली , मदिरा, मुद्रा, संभोग , कोई भी इंसान अघोरी बन सकता हैं, लेकिन एक् अघोर साधक अविवाहित होता हैं और अघोर मार्ग पे चलने वाले ग्रहस्थ हो सकते हैं, अघोरी बनने के लिए एक् गुरु चुनना पड़ता हैं, उससे दीक्षा लेने के बाद व्यक्ति अघोरी बन जाता हैं, इनके पंथ में दो मुख्य परंपरा हैं 1. शैव परंपरा 2. माँ परंपरा
शैव परंपरा में अघोरी शिव को पूजते हैं और माँ परंपरा में कामाख्या, बगलामुखी, तारापीठ और काली को पूजते हैं, अघोरी तामसिक और सात्विक दोनों पूजा को करते हैं, तामसिक में माँस मछली और मदिरा का भोग लगता हैं और सात्विक में फल, इलाईची , लौंग, जायफल, फूलों का प्रयोग होता हैं, एक् अघोरी अपनी शक्ति से किसी का भी कस्ट मिटा सकता हैं परंतु अघोरी सबके लिए कार्य नहीं करते है और छुपकर रहते हैं क्युकी ज्यादातर अपने लिए ही सिद्धीय करते हैं , वो कब साधना करते हैं आपको पता ही नहीं चलेगा ,

अघोरी होली , दिवाली, पूर्णिमा, अमावस्या , एकादशी को खुलकर जबरदश्त साधना करते हैं, इन दिनों ये गुड़िया में सूई घोंपते हैं , मुर्गे का सर काटकर साधना करते हैं , जैसा संकल्प लिया होगा साधना उतनी ही खतरनाक होगी । अघोरियों को औघड़, अवधूत, कापालिक, साँकल्य, विदेह, परमहंस , औलिया और मलंग नाम से भी जाना जाता हैं , चाहे नवग्रहों की शांति करनी हो या आत्मा रक्षा , देह रक्षा, संतान प्राप्ति, मुकदमा, वशीकरण , खोया प्यार, विवाहिक जीवन में समस्या, पराए इंसान से प्यार, आपत्ति निवारण , रोग निवारण, मारन , सारे कामों को कर सकते हैं, इन सारे कामों को उन्होंने अपने गुरु से सीखा होता है।

लेखक
ललित सिंह
संस्थापक
काली तत्त्व ज्ञान